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Category: Spirituality
Tags: IndiaMonasteriesPhilosophySpiritualityVedanta
Entities: Adi ShankaracharyaAdvaita VedantaAryambaDwarkaGovinda BhagavatpadaJyotirmathPuriShivaguruSringeri
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गुरु को आश्चर्य हुआ कि इतना सा छोटा सा बालक परिचय पूछा तो मैं अमुक शर्मा अमुक शर्मन पुत्र हा ऐसे कुछ बोलेगा है ना तो यह सब छोड़ के इसने इतना बढ़िया एक
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स्तोत्र रख दिया वहां इंस्टंटे नियस उन्होंने कमंडलु रखा वहां पर और कहा मैया मैं आपसे प्रार्थना करता हूं मेरे गुरुजी समाधि में है आप उनकी समाधि का भंग करने का पाप मत ले लो अपने सर पर प्रायश्चित
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करना पड़ेगा मां आपको तो आप इसमें समा जाइए कमंडल में तो कमंडल रखा गुफा के पास और कहते हैं नर्मदा मैया उसके भीतर गई नहीं और वहां अभी भी सुबह की 5 बजे से जो आरती होती है 4 बजे से 6 बजे तक वह
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महासरस्वती रहती है शुभ्र श्वेत वस्त्र परिधान किए हुए थे पूरे दिन वह अंबे नारायणी महालक्ष्मी के रूप में है और शाम को वो महा ली भगवती के रूप में नीले या काले वस्त्र में रहती [संगीत]
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है [संगीत] ओ ओ [संगीत]
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[संगीत] ओ ओम वेदा ना आग माना परम जल निधि सर्व विज्ञान
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पूर्णम वेदांता अर्थ प्रकाशक शम ममल रुचि भानु व दवात ना शम शिष्ट शिष्य
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समेत निरव सुखद ज्ञान दातार मशम वंदे श्रीमद गुरु नाम परम गुरु वम
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शंकर पूज्य पा हरि ओम सबको मैं केरला आदि शंकर निलयम यहां से आई हूं चिन्मई इंटरनेशनल फाउंडेशन
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आदि शंकर निलयम यह नाम उनको इस स्थान को गुरुदेव स्वामी चिन्मयानंद ने दिया था 1989 में चिन्मय मिशन ने यह जगह ले ली यहां के जो निवासी थे शंकर नंबूद्रीपद
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जगह 10 12 एकड़ की जगह है वहां मलपा मना करके घर है और वहां खुद को देखने के लिए अगर आप कुछ प्रयास करते हो तो उससे बेहतर जगह विश्व में कहीं नहीं होगी व मेल पालर
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मना यह घर का नाम है मना मतलब घर मेल पालर यह पालर य जगह का नाम है ज्योग्राफिकल एरिया है मे इज ओरिजिनल ओरिजिनल पालर हाउस तो वहां एक नंबूद्रीपद रहती थी जिनके घर में आर्यां बा नाम की
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स्त्री का जन्म हुआ ये ऐसे तो नंबूदिरि में बहुत सारे जगह पर है तो इसमें क्या बढ़िया बात है इसमें बढ़िया बात यह है कि आर्यां बा का विवाह अधिक दूर नहीं कालड़ी में एक
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शिवगुरु करके नंबूद्रीपद ब्राह्मण थे उनसे उनका विवाह हो गया आर्यां बा का और उनके संतान नहीं थी बहुत साल हो गए शादी को बूढ़े होने लगे फिर भी कोई संतान नहीं थी तो फिर उन्होंने
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त्रिशूर अभी त्रिशूर नाम आपको मालूम होगा त्रिचूर बोलते हैं या त्रिशूर बोलते हैं तो त्रि शिवपुरम ऐसा नाम है उसका पहले का तो वहां एक शिवालय है शिव का मंदिर है कहते हैं परशुराम जी ने उनकी स्थापना की
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तो वडक्कन करते हैं कहते हैं उसको तो ड़कर उन्होंने आराधना की 40 दिन तक शिव गुरु और आर्यां और बाद में उनको शिव जीी का साक्षात्कार हो गया सपना आ गया और
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उन्होंने कहा कि आपको संतान तो होगी पुत्र होगा लेकिन अल्पायु रहेगा अगर आप सर्वज्ञ पुत्र चाहते हैं और अगर दीर्घायु पुत्र चाहते बड़ी लंबी उम्र वाला पुत्र चाहते हैं तो मंद बुद्धि
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रहेगा तो स्वाभाविक है यह तो पंडित थे वेद शस्त्र तो मंद बुद्धि थोड़ी ना अपनाएंगे किसी को स्वीकार कैसे होगा उनको तो उन्होंने कहा नहीं नहीं हमें अल्पायु होगा तो भी चलेगा लेकिन सर्वज्ञ पुत्र का हमें अभिलाषा है तो उन्होंने ठीक है कहा दिया
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और फिर बाद में गर्भवती हो गई आर्यां तो बहुत सालों के बाद हो गई दूसरी हमारी यहां परंपरा है कि पहला जो या पुत्री जो भी पैदा होती है नौनिहाल में पैदा होती है मतलब पिताजी के घर में जन्म नहीं होता है
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बच्चे का आप जहां कहीं से हो आपको भी यह प्रथा मालूम होगी पूरे भारत भर में है ऐसे नहीं कि केवल केरल में है महाराष्ट्र में भी है मैं कयोंकि मेरे माता-पिता की दूसरी संतान हूं फिर भी मैं मेरी मां के घर में जन्मी थी कर्नाटक में तो यह तो पहली संतान
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थी स्वाभाविक है मलपा मना आरंबा आ गई अपने घर माइके आ गई और वहां उनका शंकराचार्य का जन्म हुआ चार कोने है वैसे फोर विंग हाउस चौ सोपी वाड़ा मराठी में कहते हैं फोर
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विंग हाउस बिग हाउस बीच में ओपन टू स्काई है और यह चार जो भाग है उसको धर्म अर्थ काम मोक्ष ऐसे चार पुरुषार्थ से लगा दिया है तो शंकराचार्य का जन्म हो गया वहां पर
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और फिर वह तीन साल के कुछ थे तब पिताजी का देहावसान हो गया वैसे भी तो बुढ़ापे की यहां जा रहे थे और पुराने जमाने में कुछ बीमारी भी होती थी तो इतनी दवा पानी नहीं होती थी तो इसके लिए शायद गए होंगे या बुढ़ापे की वजह से गुजर गए होंगे तो उनकी
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मृत्यु हो गई लेकिन उन्होंने पहले ही सोचा था कि यह बहुत विद्वान पुत्र है पूर्व जन्म से कुछ लेकर आया है तो उसका उपनयन हम 8 साल में नहीं 5 साल की उम्र में कर देंगे नहीं तो 8 साल की उम्र में ब्राह्मणों के पुत्रों
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का उपनयन होता है सर्वसामान्य ता तो इन्होंने पहले ही सोच रखा था कि 5 साल की उम्र में उपनयन करेंगे लेकिन उनका काल हो गया जब शंकराचार्य बाल थे न साल के तो यह तो अपने मां के घर ही रही फिर वही उपनयन
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हो गया उसी कोर्टयार्ड में जो ओपन टू स्काई में कहती हूं उसी कोर्टयार्ड में शंकराचार्य का व्रतबंध उपनयन हो गया उसके बाद उनको गुरुकुल भेजा गया शिक्षा प्राप्त करने के लिए तो गुरुकुल कालेटी के पास था क्योंकि गुरुकुल
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जो जिनके गुरुकुल में पढ़े वोह शिवगुरु के उनके पिताजी के ही कोई चचेरे भाई या उनके संबंधी सगे संबंधी थे उनके घर में गुरुकुल था तो वहां पर पढ़े पढ़े आ साल की उम्र में तो पूरा सब आ
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गया उनको ये जैसे कहते हैं कालिदास ने एक जगह कहा कुमार संभव में जब सती का देहांत हो गया वह दक्ष के यज्ञ में उनको बुलाया नहीं था आपको स्टोरी मालूम है कि नहीं मुझे मालूम नहीं हां तो बुलाया नहीं था शिवजी मना कर रहे थे फिर भी सती गई नहीं
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नहीं पिताजी घर जाना है बुलावा क्यों चाहिए मैं तो ऐसे चली जाती हूं फिर वहां किसी ने पूछा नहीं उनको तो अपमानित हो गई और फिर यज्ञ कुंड में आहुति दे दी सती ने है ना तो तभी एक उसका उनका दूसरा जन्म है पार्वती का हिमालय पुत्री करके पार्वती का
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जन्म हो गया तो कालिदास वहा लिखते हैं ताम हस माला शरद व गंगा प्रपे दिरे प्रात जन्म विद्या जैसे माइग्रेटरी बर्ड्स हर साल से निकलकर कहीं दक्षिण में आ जाते हैं
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उनके जीनस में उनके डीएनए में रहता है है ना मतलब उनके जो छोटे पिल्ले हो जाएंगे उनको कौन पढ़ाता है उनको कौन बोलता है कि नहीं नहीं आपको यहां से अभी जाकर वहां जाना है जाते हैं ना फिर भी ऑल माइग्रेटरी बर्ड्स माइग्रेट थाउजेंड ऑफ माइल्स
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साइबेरिया से यहां कच्छ तक आ जाते हैं भारत में आपने सुना होगा तो जैसे यह ताम हंस माला जैसे हंसों की माला आती है अपने ने निर्धारित स्थान पर वैसे ही पूर्व जन्म में जो भी हमने विद्या प्राप्त की है वह
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इस जन्म में भी प्राप्त होती है तो पार्वती को वैसे सब विद्या प्राप्त हो गई मैं तो कहती हूं बाल शंकर को पूर्व जन्म सुकृत था उनका सौभाग्य था वह पूरी विद्या आ गई तो अष्ट वर्षे
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चतुर्वेदी उनके बारे में एक श्लोक कहा जाता है अष्ट वर्षे चतुर्वेदी द्वादश सर्व शस्त्र सड़ से कृत वान भाष्यम दवात से मुनि रगात इसका मतलब है कि आठ वर्ष की आयु में चारों
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वेद उनके कंठस्थ हो गए चार वेद तो आप जानते हैं ऋग्वेद यजुर्वेद सामवेद अथर्ववेद जब वेद कहते हैं तो केवल वेद संहिता मात्र नहीं है वेद के अन्य अन्यान्य ग्रंथ भी है जैसे ब्राह्मण है आरण्यक है उपनिषद है सूत्र है वेद का मतलब
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यह पूरा वैदिक कॉर्पस उन्होंने पढ़ लिया आ साल की उम्र में सोचिए आ साल का बच्चा आजकल क्या करता है कुछ भी नहीं करता है है ना तो आ साल की उम्र में आयु में चारों वेद उनके कंठस्थ हो गए वेद का अध्ययन अर्थ
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सहित यह केवल कंठस्थ करण की बात नहीं है अर्थ भी जानना चाहिए द्वादश सर्व शस्त्र जब 12 साल की आयु थी तब बाकी सब शास्त्र सब शास्त्र निरुक्त है वेदांग है धनुर्वेद आयुर्वेद है जो उपवेद है उपांग
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है रामायण महाभारत जो जो भी शास्त्र है धर्मशास्त्र कामशास्त्र वास्तुशास्त्र सब शास्त्रों का अध्ययन हो गया सोड़ से कृत वान भाष्यम 16 साल की उम्र में आयु में उन्होंने सब ग्रंथों पर भाष्य लिखे
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संस्कृत में एंड दवात से 32 साल की आयु में मुनि अभ्यगत डिस पयर मूलतः उनकी आयु 16 साल की जब उ उन्होंने वरदान पाया था शिवजी से अल्पायु पुत्र होगा 16 साल की उम्र थी बाद में
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उनके दिग्विजय यात्रा में आता है कि वह व्यास जी उनसे मिले और उनकी आयु और बढ़ा दी यह सब ऊपर ऊपर का कथा भाग है र्वत कथा भाग है तो ये गुरुकुल में पढ़ रहे थे तो एक बार गुरुकुल के बच्चों का अभी अभी तक
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मतलब 18वीं सदी तक जब तक ब्रिटिश नहीं आए थे हमारे यहां तब तक हमारे यहां चलती थी कि गुरुकुल में बच्चे पढ़ते थे और आजूबाजू में भिक्षा मांगने जाते थे ओम भवती भिक्षा देही करके जो भी भिक्षा में मिले वह सब
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लेकर आएंगे इकट्ठा उसको पकाए जो भी है चावल और चावल के साथ कुछ दाल है तो दाल नहीं तो सब्जी नहीं तो खाली नमक के साथ चावल खाएंगे इतना मतलब कम से कम मिनिमलिज्म उसमें यह बच्चे रहते थे तो ऐसे
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वो एक दिन भिक्षा के लिए गए तो जिनके के घर में गए वह बेचारी महिला बहुत संत्र स्त थी बहुत दरिद्र थी और उनके पास इन्हें देने के लिए कुछ नहीं था उनका जी बहुत मतलब टूट गया था कि दिल कि इतना अच्छा
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तेजस्वी बालक मेरे चौखट पर खड़ा है और मैं उसको देने के लिए मैं असमर्थ हूं मेरे पास कुछ भी नहीं है तो फिर उन्होंने देखा तो एक आमला का वृक्ष था तो वृक्ष के नीचे एक सूखा आमला पड़ा था वो वृक्ष के नी कुछ कुछ
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फल सूखे हुए पड़े रहते हैं ना गिरे रहते तो उसमें से सूखा वाला जो गिरा था वो उसने दिया और बोली कि मेरे पास और कुछ नहीं है बालक तो मैं यही आपको भिक्षा में देना चाहती हूं तो शंकराचार्य का अंतःकरण इतना द्रवित हो गया इस महिला का दारिद्र्य
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देखकर कि उनके मुख से अनायास एक स्तोत्र निकल आया वही स्तोत्र कनक धारा स्तोत्र करके आप गल में सर्च करिए एम एस सुभलक्ष्मी की आवाज में बहुत मधुर अंगम हरे पुलकित बहुत अच्छा श्लोक है स्तोत्र
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है श्लोक नहीं है स्तोत्र है 18 20 कुछ श्लोक है उसमें और पहले तो मां लक्ष्मी की आराधना की उन्होंने स्तुति की और अंत में कहा कि नाम संकीर्तन भी किया और अंत में कहा अकं चना नाम प्रथम माम विद्धि जो भी
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दरिद्र लोग है उनमें से सबसे दरिद्र मैं हूं मां तो मुझ पर आप कृपा कीजिए तो लक्ष्मी प्रसन्न हो गई कहते हैं और उन्होंने सोने के आमलोगार्ड
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चिन्मई इंटरनेशनल फाउंडेशन वहां से नॉट मोर देन 20 मिनट्स और हाफ एन ववर यह स्वर्ण मना करके है वहां पर वो जो म है मतलब जो घर है वो महिला का वो तो डिलडेड कंडीशन में है उनका किसी ने उद्धार नहीं
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किया और वहां जो अभी उनके डिसेंडेंट्स रह रहे हैं वह किसी को वह दे भी नहीं रहे हैं और खुद भी नहीं कर पा रहे हैं रेस्टोरेशन उसका तो ऐसी हालत है बहुत दुख होता है लेकिन वहां वह जगह दिखाते हैं एक स्टोन है
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कि जहां पर वह लक्ष्मी का प्रादुर्भाव हुआ और वहां उन्होंने वर्षा की और उनके पीछे अभी महालक्ष्मी का मंदिर अभी 6 साल पहले ही बना है मैंने जब बीसी करके जवाइन किया चिन्मई यूनिवर्सिटी तभी वह मंदिर निर्माण
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की अवस्था में था मैंने निर्माण की अवस्था में भी देखा यह जो मना है उसके बिल्कुल पीछे है तो यह कनकधारा स्तोत्र उन्होंने तभी रचा था तो बाद में वह आ गए और उन्होंने देखा कि उनकी माता जी भी वृद्ध
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हो गई थी क्योंकि वृद्धावस्था में ही पुत्र प्राप्ति हो गई ना उनको तो वो तो पूर्णा नदी उनके पास में थी मतलब बिल्कुल पास में भी नहीं थी लेकिन नदी से जल लाना पड़ता था और पूरा रेत से आना जाना मतलब वो
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बालुका में गर्मी में तप जाती थी बालुका तो उसमें से आना जाना माता के लिए थोड़ा मुश्किल होता था तो एक दिन वो वहां गिर गई तो शंकराचार्य ने देखा कि यह तो उनको बहुत कष्ट होता है पानी आने लेने आने में
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तो उन्होंने नदी का पा जो है अपने पांव से अपने ड़ से ऐसे किया और अपने घर के पास से प्रवाहित किया काल मतलब पांव और अटी मतलब एड़ी तो इसके लिए उस गांव का नाम काल अटी
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है कालडी और वह अभी आप कालडी कभी जाओ आप केरल की टूर अवश्य करना वेलियाना बिल्कुल आना और कालडी भी लेकर जाएंगे हम आपको तो कालड़ी में अभी भी आप देखते हैं कि पेरियार जिसे आज पेरियार कहते है उसका प्राचीन नाम है पूर्णा नदी या चूर्णी
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चूर्णी भी कहते हैं कोई कोई तो पूर्णा नदी का पात्र जो मुख्य पात्र है वह बहुत दूर है और यह जो पात्र है वह एक प्रवाह बीच में आइलैंड है बीच में छोटा मतलब आइलैंड जैसा है और यहां बिल्कुल इनके घर से बगल
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से जाता है आप उनके घर में बैठे बैठोगे ना तो घर से देख सकते हो इतने नजदीक से प्रवाह जाता है ये के बारे में एक कथा कही जाती है शंकराचार्य का चरित्र उनके समकालीन कोई लोगों ने लिखा नहीं है बाद
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में लिखा है तो बहुत सारी की वदंति है बहुत सारी जैसे हम कहते हैं ना ति इति श्रुत जो परंपरा से एक श्रवण में आती है ओरल हिस्ट्री जिसे आज हम ओरल हिस्ट्री कहते हैं तो उससे यह बहुत सारी कथाएं आ गई
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है तो व कथा के माध्यम से है इसमें झूठ और सच क्या है यह कहना हमारा काम है ही नहीं हम चरित्र का बखान कर रहे हैं तो शंकर दिग्विजय इस नाम से कम से कम 152 ग्रंथ है 14वीं सदी से लेकर आज तक हो
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रहा है उनके चरित्र का निर्माण मतलब लिखना वगैरा तो उसमें यह कथा आती है और यह बालक तो हमने कहा ये तो चाइल्ड प्रॉडिजीज शब्द ज्यादा मालूम रहते है आजकल क्या करें तो चाइल्ड प्र जी है तो सब लेके
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आए हैं पूर्व जन्म से संचित तो अ उन्हो उनके मन में तो वैराग्य की भावना इतनी अधिक मात्रा में थी व मां से हरदम कहते थे कि मुझे यहां नहीं रहना है और गुरुकुल से तो गुरु ने बोल दिया कि मेरे पास जो भी था
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मैंने तो पढ़ा दिया अब मेरे पास देने लायक कुछ है ही नहीं तुम घर जाओ तो ये घर में आके रहे बूढ़ी मां की सेवा कर रहे हैं वो पानी का बहाव अपने घर से किया ये वो लेकिन उनके चित्त को शांति नहीं थी क्योंकि उनको सन्यास लेकर जाना था गुरु की खोज में जाना
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था लेकिन मां बूढ़ी थी वह अनुमति नहीं दे रही थी मां की अनुमति के बिना सन्यास ग्रहण नहीं होता आज भी नहीं होता तो एक बार वह ऐसे ही वि मनस्त थे बहुत व्यथित थे तो नदी में गए थे नहाने तो
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नदी में उनका पैर म मगर मच्छ ने पकड़ लिया मगरमच्छ ने पैर पकड़ लिया तो फिर उनके बा आजूबाजू जो उनके सखा मित्र थे वो दौड़ते दौड़ते आ गए आर्यां को बताने कि इनका पैर तो मगरमच्छ ने पकड़ लिया है तो आर्यां
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दौड़ के गई लेकिन मगरमच्छ से छुड़ाए तो कैसे छुड़ाए उनको ना छोटा बच्चा है तो तो शंकराचार्य ने कहा मां अब तो मैं मरने जाना हूं अब तो मरने वाला हूं ना मैं तो यह मगरमच्छ तो मुझे लेकर जाएगा अंदर अब तो सन्यास की अनुमति दे दो तो मैं मरू तो
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ब्रह्मचारी नहीं सन्यासी बन के मरो तो मां ने कहा ठीक है अब तो कोई चारा नहीं है न द्वितीया गतिर वर्तते तो ने कहा ठीक है मैंने अनुमति दे दी इन्होंने अनुमति दे दी मगरमच्छ ने पैर छोड़ दिया ये मतलब लीला
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है यह मगरमच्छ क्या है भवसागर में आपके जो बंधन है वो मगरमच्छ है ना वो इतना पकड़ के रखते मगरमच्छ के दांत कैसे रहते ऐसे एक बार फंस गए तो बिल्कुल जब तक वो नहीं निकालेगी आप उसके दांत से छूटो ग नहीं है
19:22
ना तो वो भव बंधन है सांसारिक बंधन है बंधन से वो छूटे करके लेकिन वो कालड़ी में मकर घाट अभी भी आप देख सकते हो जो मैं देखने लायक चीजें मैं आपको बता रही हूं कि जब भी आप जाओ तो ये स्टोरी याद रखना
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स्वर्ण त मना में कनकधारा स्तोत्र का हो गया फिर यहां मकर घाट में हो गया फिर उन्होंने अनुमति तो दे दी लेकिन गुरु कौन मिलेगा अभी वहां आवागमन के इतने साधन तो थे नहीं पुराने जमाने में तो एक बार ऐसे
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कहते हैं कि एक कोई उत्तर से बहुत बड़ा एक कारवा जा रहा था दक्षिण की ओर पद्मनाभ श्वर के दर्शन के लिए पद्मनाभ स्वामी तिरुवनंतपुरम त्रिवेंद्रम आजकल त्रिवेंद्रम तिरु अनंतपुरम तो वहां
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अनंत शयन पद्मनाभ के दर्शन के लिए जा रहा था एक कारवा बड़ा सा तो उसमें एक बड़े बुजुर्ग से एक कोई महात्मा थे तो ये जाते जाते कहीं भी मतलब रुकते थे किसी पेड़ के नीचे रुकते थे जो भी कुछ खाना देता था
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खाते थे और फिर आगे चले जाते थे तो ऐसे वह इनके घर के पास रुके थे कालड़ी में इनका जो घर था उनके पास रुके थे तो शंकराचार्य अपनी दिनचर्या करके आ गए तो बुजुर्ग महात्मा ने देख लिया और
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शंकराचार्य भी स्मित हो गए कि इतना बड़ा कारवा यहां आ गया है तो इनकी क्या सेवा किया जाए तो वह भी थोड़ा व्यस्त थे तो बुजुर्ग ने उनको बुलाया बालक तुम यहां क्या कर रहे हो तुम्हारे गुरु वहां तुम्हारी राह देख रहे हैं
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कहां नर्मदा के किनारे ओमकारेश्वर फिर यह बालक 8 साल का बालक अपने किसी सखा को लेकर कोई विष्णु कहते हैं उनका नाम कोई और कुछ कहते हैं तो उनको लेकर और कोई जो कारवा यहां से वहां
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जा रहा था दक्षिण से उत्तर की दिशा की ओर कोई व्यापारी भी रहते हैं कोई पिलग्रिम्स भी रहते हैं तो किसी के साथ यह दो बच्चे हो लिए और गए नर्मदा के पास नर्मदा मैया के किनारे गए ओमकारेश्वर जहां आज मध्य
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प्रदेश गवर्नमेंट की कल्चरल मिनिस्ट्री से एकता न्यास ने बड़ा 108 फीट बाल शंकर का विग्रह स्थापित किया वो तो आपको मालूम रहेगा ना अभी 21 सितंबर को हो गया गत साल हम भी गए थे वहां पे तो वहां गए और फिर
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गुरु ने पूछा कस्तम कौन हो तुम बालक तेजस्वी मुद्रा है बालक कौन है सर्व सामान्यता क्या होता है किसी को नाम पूछते हैं तो मैं अमुक गोत्र में उत्पन्न इनका पुत्र हूं यह वो ऐसे सब अपना परिचय दिया
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जाता है ना तो इन्होंने अपने परिचय में क्या कहा न भूमिर न तोयं न तेजो न वायु या मनो बुद्ध अहंकार चित्ता निनाहम नच शोत्र जिव
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नच ग्राण नेत्र न चव्य म भूमिर न तेजो न वायु चिदानंद रूप शिवो हम शिवो हम गुरु को आश्चर्य हुआ कि इतना सा छोटा सा बालक परिचय पूछा तो मैं अमुक शर्मा अमुक शर्म
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पुत्र ऐसे कुछ बोलेगा है ना तो यह सब छोड़ के इसने इतना बढ़िया एक स्तोत्र रच दिया वहां इंस्टंटे नियस तो उन्होंने जान लिया कोई सामान्य बालक तो है ही नहीं चाइल्ड प्रॉडिगी जैसे तो उन्होंने उसको शिष्य के
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रूप में स्वीकार कर दिया और उनका एक गुरु का होना आवश्यक होता है शिष्य के या हम भी ग आपको कितना भी ज्ञान दे फिर भी जब तक गुरु के मुंह से नहीं सुनते वह ज्ञान प्रमाणित नहीं होता है क्योंकि ग बहुत फेक
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न्यूज भी आपको देता है फेक नॉलेज भी सर्कुलेशन में रहता है है ना इसके लिए गुरु का होना बहुत आवश्यक आध्यात्मिक प्रगति के लिए तो बहुत ही अनिवार्य तो उन्होंने शिष्य के रूप में स्वीकार कर दिया और फिर एक बार ऐसे हो गया
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वो गुरु थे उनके कौन गुरु गोविंद भगवत पाद इनकी जो परंपरा है शंकराचार्य उनके गुरु गोविंद भगवत पाद गोविंद भगवत पाद के गुरु है गौड़ पादा आचार्य ये गौड़पदाचार्य है जिन्होंने सांख्यकारिका पर कमेंट्री
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वगैरह लिखी है मांडूक के उपनिषद के ऊपर गोविंद भगवत पाद की कोई स्वतंत्र कृति तो नहीं है लेकिन उन्होंने शंकराचार्य जैसे शिष्य उत्तम को अपना पूर्वा ज्ञान दे दिया था और ये योगी थे ऐसे कहते हैं जो भगवान
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पतंजलि थे शेष के अवतार जिन्होंने योग सूत्र की रचना की उन्हीं का अंशा वतार भगवत पाद गोविंद भगवत पाद है इसके लिए वह योग में लीन रहते थे जब योग में नहीं रहते थे समाधि में नहीं रहते थे तब ज्ञान
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बांटते थे नहीं तो योगस्था रहते थे तो एक दिन ऐसे ही हो गया अपनी गुफा में वो गोविंद भगवत पाद की गुफा अभी भी है ओंकारेश्वर में हां उसी के ऊपर तो यह स्टैचू बना है बाल शंकर का तो एक दिन ऐसे
24:44
हो गया कि वह नर्मदा के बिल्कुल किनारे पर है गुफा तो वहां वो लंबक योग ऐसा कुछ योग है तो उस समाधि में रहते हैं ना कोई योगी तो आठ 10 दिन महीना भी कभी-कभी जाता है ना भूख ना प्यास ना कुछ शारीरिक क्रिया बस
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योगस्था रहते हैं तो ऐसे वो योगस्था थे और नर्मदा बढ़ने लगी बारिश का मौसम था वर्षा का मौसम था और बाढ़ आ गई नर्मदा में तो नर्मदा में बाढ़ आई तो हमने अभी भी देखा
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जब यह अनावरण होना था 19 सितंबर को तो 19 की वजह 21 को हो गया क्योंकि पूल पर से पानी जा रहा था ओंकारेश्वर से तो इसके लिए नर्मदा मैया एकदम रौद्र रूप धारण करेगी तो क्या होगा पता नहीं चलता तो नर्मदा मैया
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का पानी धीरे-धीरे धीरे-धीरे बढ़ने लगा सब शिष्यों को चिंता होने लगी कि अभी गुफा में पानी जाएगा समाधि भंग हो जाएगी फिर गुरुजी को थोड़ा समाधि से हटाना तो है लेकिन कैसे करेंगे गुरु का कोप हो गया तो क्रोध हो गया तो सब लोग डरने
25:48
लगे शंकराचार्य के पास गए सब जान तो गए थे कि ये कोई अद्भुत बालक है तो शंकराचार्य के पास गए तो शंकराचार्य ने नर्मदा मैया की स्तुति की और वह है नर्मदा अष्टकम जो आज नर्मदाष्टक कहा जाता है सब इंदु सिंधु इससे शुरू होता
26:05
है बहुत अद्भुत श्लोक है स्तोत्र है तो आठ अष्टक मतलब आठ श्लोक रहते हैं उसमें और नवा कुछ फल श्रुति जैसे ये श्लोक ये स्तोत्र जो पढ़ेगा उसकी सब कामनाएं पूरी होगी वगैरा वगर तो नर्मदा उन्होंने कमंडलु
26:21
रखा वहां पर और कहा मैया मैं आपसे प्रार्थना करता हूं मेरे गुरुजी समाधि में है आप उनकी समा का भंग करने का पाप मत ले लो अपने सर पर प्रायश्चित करना पड़ेगा मां आपको तो आप इसमें समा जाइए कमंडल में तो
26:37
कमंडल रखा गुफा के पास और कहते हैं नर्मदा मैया उसके भीतर गई नहीं गुफा के भीतर नहीं गई और वही लीन हो गई और जब गुरु को बाद में पता चला ऐसे सब हो गया बाकी शिष्यों ने बताया तब गुरु बहुत प्रसन्न हो गए भगवत
26:55
पाद गोविंद पाद और उन्होंने कहा अब मेरे मेरे यहां भी तुम्हें देने के लिए कुछ नहीं है मेरे पास जो था वो तो सब तुम सब ग्रहण कर चुके हो अब ये जो अद्वैत वेदांत है उसका प्रचार तुम्हें करना है त काशी
27:11
जाओ काशी तो पूरे मतलब क्या बोलते हैं ना अपना कल्चरल कैपिटल इज काशी काश इति काशी जो चमकती है किसकी चमक है ज्ञान का प्रकाश है प्रकाश ते काश इति काशी और काशी को और
27:28
एक कहते हैं आज क्या आप बोलते हो वाराणसी वाराणसी ये वरणा और नासी यह दो हमारी भोह है नासी ये नाक की ये है भगवत गीता में भी आप देखते हो ना तो छठे अध्याय में जो
27:44
ध्यान योग कहा है भगवंत ने तो उसमें कहा है संप्रेक्षण सि काग्र स्वम दिचा नवलोक अथवा भुवो मध्य प्राण मावे सम्यक ध्यान करने की दो विधियां है एक तो अपने नाक को
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देखकर कीजिए मतलब अपने हृदय पर कंसंट्रेट कीजिए और दूसरा उर्ध्व दृष्टि ये अधो दृष्टि है उर्ध्व दृष्टि भ्रो मध्य प्राण मावे सम्यक तो यह दोनों के बीच की जो जगह है इसे अविमुक्त का क्षेत्र यह है अपने
28:19
शरीर में स्थित काशी आज्ञा चक्र के पास तो ये काशी का मतलब इतना बड़ा इसका इंपॉर्टेंस है इतनी म मता है उसकी गरिमा है तो काशी में जाने के लिए कहा तो काशी में आए और अभी ओंकारेश्वर से काशी आना है
28:37
तो बीच-बीच में गांव में जहां कहीं भी रुकेंगे प्रवचन तो करेंगे हम अभी यहां आ गए प्रवचन करने लगे तो जो भी जाहा जो भी हमें मालूम है हम बताते जाते हैं है ना तो ऐसे बताते गए कारवा चलता गया बढ़ता गया
28:52
बहुत सारे लोग इनके साथ हो लिए जब तक काशी गए तो इनका परिवार शिष्य परिवार बहुत बढ़ गया था दशाश्वमेध घाट के पास कहते हैं काशी में इनका सबसे अधिक वास जो रहा सन्यास के पश्चात वो काशी में रहा शंकराचार्य का तो
29:08
80 घाट या दशाश्वमेध घाट के पास उनका वास्तव्य था और एक गुरुकुल जैसा वहां उन्होंने बना लिया बहुत सारे शिष्य थे और फिर वहां एक बार एक ऐसे काले से दिखने वाले बड़े बुजुर्ग गाड़ी बीड़ी वाले
29:25
ऐसे एक महात्मा आ गए और बोले कि कहा आपके गुरु जी कहां है मुझे उनसे कुछ शास्त्रार्थ करना है शास्त्रार्थ की परंपरा हमारे यहां अभी भी थोड़ी विद्यमान है गुरुकुल में आप शास्त्रार्थ करने के
29:42
लिए किसी को ललकार हो ना तो ना नहीं कह सकते ना कह दिया मतलब आपने अपनी पराजय स्वीकार कर ली इसके लिए चैलेंज करके स्वीकारना है उसको शास्त्रार्थ करना एक तो आप जीतोगे नहीं तो हम जीतेंगे उसमें कुछ कंडीशन भी रखते हैं वो हम आगे भी देखेंगे
30:00
तो इन्होने शास्त्रार्थ करना चाहा तो शिष्यों ने कहा ठीक है गुरुजी से हम कह देते हैं उन्होंने सोचा हमारे गुरुजी तो इतने विद्वान है क्या पाच द मिनट में इनको हरा देंगे और हो जाएगा तो यह शास्त्रार्थ करने बैठे तो यह
30:17
ब्रह्मसूत्र बादरा ण विरचित ब्रह्म सूत्र 555 सूत्र है उसमें चार अध्यायों में बटे हैं उस पर भाष्य लिखा है आचार्यों ने तो इसमें तीसरे अध्याय का एक सूत्र है तत प्रति पते है रहती गति कुछ ये एस्केटोलॉजी
30:35
के बारे में है एस्केटोलॉजी का मतलब है उत्क्रमण शास्त्र उत्क्रमण शास्त्र का मतलब है मृत्यु के पश्चात क्या होता है एस्केट इज डेथ एस्केटोलॉजी इज द साइंस ऑफ आफ्टर डेथ आफ्टर डेथ लाइफ आफ्टर लाइफ क्या
30:52
होता है आपका इसके बारे में तो उसके बारे में तद अंतर प्रतिप रहती ऐसा कुछ सूत्र है उसमें तो उस सूत्र पर उनको व्याख्या करनी थी शास्त्रार्थ करना था बस दोनों का डिबेट चलता रहा चलता रहा घंटे बीत गए दिन बीत गए
31:10
18 दिन तक चलता रहा तो शंकराचार्य ने भी जान लिया यह कोई सामान्य व्यक्ति तो हो नहीं सकता और शिष्यों ने भी जान लिया तो वह कहते हैं सब दिग्विजय ग्रंथ का जो भी है उनके बायोग्राफर वो सब लिखते हैं वो
31:26
साक्षात वेदव व्यास ही थे जिन्होंने सूत्रों की रचना की है तो उन्होंने शास्त्रार्थ करना चाहा और फिर वह इतने प्रसन्न हो गए तभी कहते हैं कि उन्होंने उनकी आयु बढ़ा दी जो 16 साल की थी वोह 32
31:42
साल की कर दी और कहा कि अब अद्वैत का प्रचार प्रसार करने के लिए तुम्हें आ भारतवर्ष सब जगह घूमना पड़ेगा और केवल घूम के नहीं चलेगा जो भी केवल कर्मकांड को मानते हैं और ज्ञान को नहीं मानते अद्वैत
31:59
को नहीं मानते उनके मत का खंडन भी तो करना चाहिए मीमा सको का बौद्ध मतों का जैन मतों का पाखंड हों का सबका खंडन करो और अद्वैत वेदांत मत का मंडन करो यह
32:27
करके उनका खंडन पहले करो उनका बहुत बोलबाला था सब जगह पर तो इन्होंने कहा ठीक है अपने शिष्य समेत शिष्ट समेत मैंने जो पहले श्लोक बोला शिष्ट ही शिष्य समेत तो अपने शिष्यों को लेकर ये गए प्रयागराज
32:45
कुमारिल भट्ट वहां देखते हैं कुमारिल का घर तो कोई भी बंदा बच्चा बच्चा जानता था बहुत बड़े व्यक्ति थे स्कॉलर थे प्रकांड पंडित थे मीमांसा के और बौद्ध मत का भी उन्होंने बहुत अच्छा अध्ययन किया था वस्तुतः ऐसे कहा जाता है
33:03
कुमारिल भट्ट का जो चरित्र जिसी ने भी जिस किसी ने लिखा है कुमारिल भट्ट बौद्ध मत के बौद्ध मत का खंडन करना चाहते थे इसके लिए जब तक वह जानेंगे नहीं बौद्ध मत क्या है खंडन कैसे करेंगे इसके लिए वह बौद्ध मतानु
33:22
बनकर उनके मठों में रहकर उन्होंने बौद्ध मत जान लिया ये मतलब खुफिया रीति से जान लिया छुपाकर अपनी आइडेंटिटी को छुपाकर उन्होंने यह जानने की कोशिश की तो बाकी लोगों को उनके थोड़े दिन
33:39
के बाद थोड़े साल के बाद पता चला अरे यह तो पक्का ब्राह्मण है अ वेदांती है मी मांस है और यहां भेस बदलकर बौद्ध मता अनुयाई बनकर आया है तो उन्होंने उनको एक पर्वत पे ले जाकर नीचे फेंक दिया उनको
33:56
मारने के लिए पर गिरते गिरते कुमारिल भट्ट ने चरित्र का लिखते हैं कि कहा अगर मेरी वेदों में श्रद्धा है और अगर वेद अपौरुषेय है तो मुझे प्राण की क्षति नहीं होगी तो
34:12
उनके प्राण तो नहीं गए लेकिन उनकी आंख चली गई क्यों उन्होंने कहा यदि वेदों में मेरी श्रद्धा है और यदि वेद अपौरुषेय है तो मतलब उन्होंने शंका ली वेदों के रुष यत्व पर इसके लिए उनको उसका
34:31
प्रायश्चित लेना पड़ा एक शिक्षा मतलब पनिशमेंट देना पड़ा उनको शासन लेना पड़ा फिर उनको इतना बुरा लगा अपने ऊपर घिन आ गई उनको कि मैंने कैसे संदेह कर लिया वेदों की
34:49
प्रामाणिक ही नहीं है मैं वेदों पर शंका करता हूं संदेह करता हूं तो मुझे जीने का क्या अधिकार है इसके लिए उन्होंने अपने आपको जलाने का फैसला कर दिया और वह जलाना मतलब कूद पड़ना नहीं है इसमें आग में
35:06
हल्के हल्के जलना है तो हल्के हल्के जलने के लिए वह खड़े रहे और नीचे घास और तुष तुष मतलब क्या है जो डी हस्क करते हैं ना राइस ग्रेन को उसका जो हस्क रहता है उसको
35:22
कहते हैं तुष तो छोटा छोटा रहेगा एक चावल का दाना कितना बड़ा रहेगा उस का हस्क तो छोटे छोटे छोटे ऐसे हस्क तुष वो जलाकर मतलब हल्के हल्के मतलब उनको वेदना होनी चाहिए उतनी कि मैंने कितना बड़ा पाप किया
35:38
है तो मुझे ऐसी वेदना में मृत्यु आनी चाहिए तुषा अग्नि में वो जल रहे थे उनके पैर जल रहे थे यहां तक जल गए थे लेकिन ऊपर का हिस्सा अभी बाकी था जब शंकराचार्य पहुंचे यह कथाकार लिखते हैं और फिर उन्होंने कहा मैं तो अभी तुमसे कुछ
35:56
शास्त्रार्थ करने से रहा मैं तो अभी मर जाऊंगा लेकिन मेरा पट्ट शिष्य है माहिष्मती नगरी में रहता है मंडन मिश्र करके तुम उसको जाके शास्त्रार्थ के लिए ललकारो फिर यह गए मंडन मिश्र के पास विमास
36:12
कों का खंडन करना है वेदांत की प्रतिष्ठापना करनी है मीमांसा यह क्या है ये मीमांसा पूर्व मीमांसा उत्तर मीमांसा ड़ दर्शन में सांख्य योग न्याय वैशेषिक पूर्व मीमांसा उत्तर मीमांसा ऐसे छह दर्शन
36:28
तो पूर्व विमास लोग जो है ना केवल कर्मकांड करते हैं ज्ञान पर उनकी श्रद्धा नहीं यह करो ऐसा करो वैसा करो ऐसा नहीं किया तो तुम्हें पुण्य नहीं मिलेगा ऐसा करोगे तो पाप के भागी हो जाओगे मतलब पूरा कर्म सिद्धांत पर है उनका और कुछ भी नहीं
36:44
करते तो यह खंडन करना है उससे आगे बढ़ना है ना कर्म से आगे ज्ञान तक जाना है आपको तो यह गए मंडन मिश्र फिर मंडन मिश्र को बाकी में स्टोरी नहीं बताती टू कट इट शॉर्ट मंडन मिश्र को लकारा तो बोले कि ठीक
36:59
है लेकिन जूरी कौन रहेगा कोई जज तो चाहिए तो जूरी उनकी खुद की धर्मपत्नी उभय भारती वह साक्षात सरस्वती का अंशा अवतार कही जाती थी तो उभय भारती को जूरी बनाओ जज
37:14
बनाओ ऐसे दोनों मत से हो गया तो बोली कि हां मैं तो जज बनूंगी वो भी विदुषी थी तो लेकिन वो बोली मुझे घर के कामकाज भी तो करने हैं आपको खिलाना भी तो है है ना रोटी वोटी कौन करेगा आपके लिए खाना कौन बनाएगा तो बीच-बीच में
37:30
मैं आती जाती रहूंगी तो मुझे कैसे पता चलेगा कि कौन जीत रहा है कौन हार रहा है तो मैं दोनों के गले में माला डालती हूं जिसकी माला पहले सूखे गी वह हार रहा है जिसकी माला वैसे ही ताजी है फूल ताजे हैं
37:47
वह जीत रहा है तो दोनों के गले में उसने माला पहना यह माला वाला रामायण में भी आता है वाली और सुग्रीव के बीच में वो भी आता है एनीहाउ तो ये बीच-बीच में देख रही थी उनका भी शास्त्रार्थ बहुत दिनों तक चला फिर उसने देख लिया कि नहीं अपने पति हार
38:03
रहे हैं तो एक क्षण आ गया कि उन्होंने अपनी हार स्वीकार कर ली मंडन मिश्र ने तो यह बोले ठीक है और उनका कंडीशन क्या था अगर वह हारे तो उन्हें शिष्यवृत्ती
38:27
तो उभय भारती बोली यह तो हारे लेकिन मैं नहीं हारी ना मुझे हरा मैं इनकी धर्म पत्नी हूं अर्धांगिनी हूं जब तक मुझे नहीं हराते बाद में तब तक आपकी जीत नहीं है तो बोले ठीक है आप पूछिए सवाल तो उन्होंने
38:43
कामशास्त्र पर सवाल पूछना शुरू कर दिया अब यह ठहरे बाल ब्रह्मचारी तो यह कामशास्त्र के बारे में कैसे कुछ जानेंगे मतलब अनुभव से नहीं कुछ ज्ञान नहीं तो उन्होंने अवधि मांग ली एक महीने की और
39:00
अपने शिष्यों से कहा अगर यहां आसपास कोई अभी मरा हो तो मैं उसकी शरीर में प्रवेश करता हूं परकाया प्रवेश कहते हैं उसको और वह सब चीजें भोग लेता हूं जो अन्य सासारी सांसारिक जीव भोगते हैं तो एक वहां का
39:17
राजा था अमरक करके अमरक अमरू अमरक ऐसे दो तीन नाम आते हैं उनके तो वो जस्ट कुछ नहीं हुआ था और मर ग मतलब हार्ट अटैक हो गया उसका तो उन्होंने उसकी शरीर उसके शरीर में प्रवेश कर लिया
39:34
और शिष्यों से कहा कि मेरा शरीर इस गुफा में ऐसे ही रखो एक महीना कुछ नहीं होगा वो लंबक योग वगैरह यह भी सब किए थे तो और एक महीने के बाद में आऊंगा तब तक इसका प्रिजर्वेशन करना एक महीने तक मतलब कुछ 20 2 दिन में इसके शरीर में प्रवेश करके रह
39:51
जाता हूं और फिर उन्होंने वह सब उनकी तो राजा थे तो बहुत सारी पत्नियां थी रानियां थी रवा था तो उन्होंने काम शास्त्र के बारे में पूरा जान लिया और फिर बाद में वह वापस गए अपने शरीर में फिर उभय भारती के पास आए उनके सवालों का जवाब लेकिन जवाब
40:09
देने की आवश्यकता ही नहीं थी वह तो जान गई इनको देख के वह तो पहले ही जान चुकी थी कि यह तो सर्वज्ञ है लेकिन केवल एक परीक्षा के लिए उसके भी मन का मन की तैयारी होनी चाहिए ना सन्यास लेने के लिए पति के भी मन
40:24
की तैयारी होनी चाहिए उनके भी मन की तैयारी होनी चाहिए और कुछ नहीं है फिर बाद में उन्होंने सन्यास स्वीकार कर लिया और उनका नाम इन्होंने रखा सुरेश्वरी यह सुरेश्वरी
40:39
श्रृंगेरी कर्नाटक में शिमोगा डिस्ट्रिक्ट में जो श्रृंगेरी करके गांव है तो वहां श्रंग गिरी वहां के पहले मठाधीश वरा चार्य थे ऐसे कहते हैं और भी उनके चार शिष्य थे एक पद्म पादा आचार्य थे
40:56
एक टका थे और हस्ता मल काचार्य थे तो हस्ता मल काचार्य के बारे में कहा जाता है कि वह तो एक ऐसा बालक था कि कहीं कुछ बोलता नहीं था और माता-पिता को बहुत चिंता होती थी किय गुमसुम गुमसुम बैठता है कुछ
41:13
जवाब नहीं देता कुछ नहीं करता वगैरा तो एक बार लेकर आए शंकराचार्य के पास तो उन्होंने कहा कि कौन हो तुम बालक तो बालक ने एक बड़ा स्तोत्र रचा नाहम भिक्षु नमे समथिंग समथिंग ऐसा है
41:32
हस्ता मलकी स्तोत्र करके आप उसको देख सकते हैं तो शंकराचार्य ने देखा यह तो प्रॉडिजीज में से लेकर आया है सब तो उनका नाम उन्होने हस्ता मलक रखा मतलब हाथ में रखा आवला जिस तरह स्पष्ट तया हम देख सकते
41:49
हैं उसी तरह यह पूरा ब्रह्मज्ञान इसको है इसको कोई पढ़ाने की आवश्यकता नहीं है लेकिन यह मेरे मे साथ रह लेगा आपको चिंता हो रही है मेरे साथ रहेगा इसके लिए वह स्वीकार किया पद्म पादा चार्य कहते हैं
42:04
चारों शिष्यों में एक तो सुरेश्वरी बहुत बड़े थे उम्र में और बहुत विद्वान थे पद्म पादा चार्य उम्र में छोटे लेकिन बहुत तेज दिमाग वाले थे दिमाग वैसे भी तेज था क्रोध भी जल्दी आता था और तेज मतलब विद्या ग्रहण
42:21
करने में भी बहुत तेज थे और वो कहते हैं नरसिंह के अवतार थे एक भैरव की कथा आती है दिग्विजय में तो एक काल भैरव को बलि चढ़ाने थी शंकराचार्य को उन्होंने कहा आप तो शरीर नहीं है कुछ नहीं है कुछ नहीं है
42:37
आप तो केवल आत्मा है तो मैं आपकी बलि चढ़ाऊं भैरव को तो क्या हानि है शंकराचार्य बोले मुझे कोई आपत्ति नहीं चढ़ाओ तो उन्होंने कुछ अमावास के दिन उनको बुलाया वो भैरवा आचार्य ने और यह शंकराचार्य तो समाधि में बैठे रे आपको जो
42:53
करना है मेरे शरीर से करो मेरी आत्मा तो अमर है अ जो नित्य शाश्वत पुराण न हनते हन्य माने शरीरे शरीर मारा तो भी आत्मा को कुछ नहीं होगा तो फिर वह जब मारने जा रहा था बलि चढ़ाने के लिए तब पद्म पादा चार्य नृसिंह का रूप लेकर आए और
43:11
उस भैरव का नाश किया ऐसी सब कथाएं हैं तो वह उनकी श्रद्धा नरसिंह पर थी वह बहुत ये थे तेज थे और एक गिरी कर के शिष्य था वह थोड़ा मतलब मंद बुद्धि था
43:27
सब लोग जो सीखते थे दो बार बोलने से इसको 10 बार बोलना पड़ता था इतना ही अंतर था और कुछ नहीं एक बार सब शिष्य पढ़ने बैठ गए तो गिरी नहीं आया था और शंकराचार्य ने कहा गिरी नहीं आया अभी तक तो बोले नहीं उसको
43:43
आके भी क्या फायदा है उसको कहां समझ में आता है पद्म पादा चार्य बोले उसको कहां कुछ समझता है आप पढ़ाना शुरू कर दीजिए गुरुजी वो तो वैसे भी मंद है उसको हम बाद में देख लेंगे तो गुरुजी ने कुछ कहा नहीं शंकराचार्य ने केवल स्मित किया और वहां वह
43:59
गिरी उनके वस्त्र प्रक्षालन कर रहा था वस्त्र धो रहा नदी पर और वो उनकी पूरी सेवा इतनी ईमानदारी से करता था दिलो जान से करता था उसने कभी ऐसा नहीं सोचा कि बाकी सब शिष्य इतने उनके प्रभावित है मुझे
44:15
कुछ ज्ञान क्यों नहीं देते गुरुजी मुझ पर अनुग्रह क्यों नहीं कभी कुछ नहीं सोचा जो उनसे होता था वो उन्होंने किया तो सेवा धर्मो परम गहन लेकिन सेवा में कितनी शक्ति है सेवा का फल आज नहीं तो कल कैसे मिलता
44:31
है इसका उदाहरण है गिरी की कथा तो गिरी को वहां कपड़े धोते धोते जैसे पूरे शरीर में ऐसी लहर दौड़ गई कि कुछ अद्भुत अनुभव करने लगे वह और दौड़ते दौड़ते आए शंकराचार्य के
44:46
पास और वहां उन्होंने शुरू किया एक स्तोत्र विदिता कहिए करुणा वरुणा लय पालय माम भव सागर दुख विदु नदम रच खिल दर्शन तत्व
45:08
विदमते शिकम शरणम भव शंकर देशिक है गाइड देशिक जो दिशा दिखाता है वन पॉइंट यू वह आपको हाथ पकड़ के पानी तक नहीं ले जाएगा यहां पानी है आप जाओ और पानी ले लो दिशा
45:25
दिग दर्शित करता है व दे गुरु अलग है देशिक अलग है उपाध्याय अलग है आचार्य अलग है शिक्षक अलग है प्रेरक अलग है बहुत सारे उसमें विधाएं भव शंकर देशिक मेंे शरणम व ऐसे
45:40
स्तोत्र बोलते बोलते आ गया और चरणों में आकर गिर गया और वह जो उन्होंने रचना की वह त्रोचायक नाम तोटा काचार्य रखा तो यह हुए उनके चार शिष्य तोटा काचार्य को उ ने
45:57
ज्योतिर मठ चार दिशाओं में चार मठों की स्थापना की आचार्य ने तो जो इनको दिया ज्योतिर मठ उत्तराम नाय फिर पूरी का जो मठ था पूर्वा मनाय गोवर्धन मठ कहते हैं उसको
46:12
तो वहां रखा पद्म पादा चार्य को हस्ता मलक को रखा द्वारका में और सुरेश्वरी को रखा दक्षिणाम नाय तो चार दिशाओं में चार मठों की स्थापना जैसे चार दिशाओं से हमारे सनातन धर्म की रक्षा करने के लिए चार बड़े
46:31
दुर्ग बांधे हो उन्होंने और फिर बाद में सभी का मतलब इन्होंने खंडन किया मीमाव सकों का खंडन किया कहते हैं द्वि सप्तती मतो क्षेत्रे नमः उनकी अष्टोत्तर शतनामावली में 72 ऐसे
46:48
पाखंडी मत थे उनका उन्होंने खंडन किया और वेदांत की प्रतिष्ठापना की फिर कश्मीर में उन्होंने सर्वज्ञ पीठ पर आरोहण कर दिया मतलब उनसे बढ़कर अभी और कोई नहीं यह सबने
47:04
माना जैसे सार्वभौम राजा रहता है वैसे यति हों में जो सार्वभौम का है वह सर्वज्ञ पीठ की तो शोभा सर्वज्ञ पीठ की आचार आरती शंकराचार्य की तो सर्वज्ञ पीठ पर आरोहण हो
47:19
गए और यहां जो उन्होंने मां से सन्यास मांगा था तो मां ने एक कहा था एक कही थी जब मेरा अंत समय आएगा तब तुम जरूर आ जाना मैं तुम्हें अनुमति तो देती हूं लेकिन यहां कोई है ही नहीं मुझे देखने वाला तो
47:36
अंत समय तुम मेरे पास रहो यही मेरी कामना है तो फिर यह तीन बार उन्होंने दिग्विजय किया है भारत का तो तीसरे दिग्विजय के समय जब यह कर्नाटक में थे तब उन्हें साक्षात्कार हुआ कि उनकी मां डेथ बेड पर है अब जाना चाहिए मुझे और फिर वह समाधि
47:54
मतलब सिद्ध सा जो अणिमा महिमा लघिमा अष्ट सिद्धियां है तो सिद्धि से वो श्रृंगेरी से लेकर काल तक आ गए मां को उन्होंने देखा मां से पूछा अंतिम इच्छा क्या है तो मां ने कहा कि मुझे भगवान कृष्ण के दर्शन करने
48:11
हैं तो उन्होंने कृष्णाष्टकम् बा का वहां वृंदावन है जहां
48:27
समाधि उन्होंने की वहां एक स्टोन का इतना इतना सा स्तंभ है पत्थर का एक स्तंभ है उसमें दिया रखने के लिए छोटी सी जगह है तो उस स्तंभ पर तमिल में एक लेख लिखा है एपीग्राफ है कि यह आरंबा की समाधि है और
48:45
यह आप कालड़ी कभी जाओ तो आर्यां की समाधि वहां वृंदावन बंधा है एक बाजू शंकराचार्य का मंदिर है एक बाजू में शारदा आबा की प्रतिष्ठापना है अष्ट मातृका है इतना ही है और एक गणेश की स्थापना की है बाकी वहां
49:00
रूम्स नहीं है कुछ नहीं है आप हमारे यहां आ जाओ चिन्मय इंटरनेशनल फाउंडेशन वेलिया नाड अभी वेलिया नाड एंड पिरम ये वेलिया नाड करके वहा एरनाकुलम के लोग भी नहीं जानते इसको कोची के लोग भी उनको भी मालूम नहीं है तो हमें बोलना पड़ता है पिरम पिर
49:17
पिरम सो पिरवी ये जो नाम है ना ये तमिल और मलयालम दोनों भाषा में उसका अर्थ है जन्म किसका जन्म शंकराचार्य का व किसी कोई बड़ी हस्ती वहां जन्मी इसके लिए उस एरिया
49:32
का नाम पिरवी पड़ा पिरम और वेलिया नाड नाड मतलब जैसे तमिलनाडु तुल नाड नाडु इ भूभाग ज्योग्राफिकल एरिया राट प्रदेश वेलिया इज लाइक यह जन्मे और उनके जन्म से पूरे ज्ञान
49:50
का प्रकाश इस भूमि में पड़ा इसके लिए वेलियाना और यहां जो मलपा मना है वहां बहुत सारे रूम्स भी है घर है तो रूम्स होने चाहिए ना घर तो केवल मंदिर नहीं होता तो यह जो मंदिर बनाया है कालड़ी में वह
50:07
1960 में बना है और यहां का जो मंदिर है व 25 2000 साल पुराना है मतलब उसका जो फाउंडेशन है वह वही है ऊपर का स्ट्रक्चर सब ओबवियस ऊपर का स्ट्रक्चर सब नया है लेकिन आप वहां घर में आओ हमारे हमारे घर
50:24
में मतलब आदि शंकराचार्य के घर में एक कीला भी नहीं होगा यहां टिपिकल केरला आर्किटेक्चर है एंड इंटरलॉकिंग है वुड्स सब वुडन स्ट्रक्चर है इंटरलॉकिंग है इंटरलॉकिंग वुड से बनाया स्तंभ है उसके
50:40
ऊपर कुछ दूसरा बिठाया है हा और पूरा केरला आर्किटेक्चर है तो यह इनका चरित्र संक्षेप में मैंने कहा बहुत सारे स्तोत्र है उनके और बहुत सारी कथाएं हैं उनके स्तोत्रं के पीछे कथाएं हैं कश्मीर में कहते हैं उन्हो
50:56
ने सौंदर्य लहरी ग्रंथ उनको साक्षात नंदि केश्वर से मिला तो नंदि केश्वर ने जो दिया उसमें बहुत मतलब बहुत लंबा चौड़ा था महा त्रिपुर सुंदरी के बारे में तो इन्होंने एक ग्लांस
51:12
किया तो उनको सब कंठस्थ हो गया जैसे बाद में उन्होंने यह सबको नहीं देना है करके वाइप आउट किया तो केवल पहले 40 रहे बाकी सब 40 के बाद के जो श्लोक है 42 के बाद के वो सब वाइप आउट हो गए नंदीकेश्वर के
51:28
इन्होंने रचे वो सौंदर्य लहरी है पहले जो 40 है उसको आनंद लहरी कहते हैं और वो महा त्रिपुर सुंदरी वो श्री विद्या बोलिए आप श्री यंत्र कहिए जिसकी प्रतिष्ठापना उन्होंने श्रृंगेरी में की है जिसकी
51:45
प्रतिष्ठापना उन्होंने कांची कामाक्षी के यहां नीचे की है जिसकी प्रतिष्ठापना शारदा के टेंपल में हुई थी कश्मीर में जब वो शारदा टेंपल गए अभी तो वहां कुछ है ही नहीं वो तो पोक में है पक हां पक ऑक्यूपाइड इंडिया में है वो शारदा का
52:03
मंदिर तो वहां पर जब गए तो सरस्वती शारदा मतलब सरस्वती सरस्वती बहुत प्रसन्न हो गई उन पर तो बोले कि वर मांगो तो उन्होंने कहा मेरे क्षेत्र में केरल राज्य में आपका सनिवात नहीं है सन्निधि नहीं है वहां
52:19
भगवती है काली है लेकिन सरस्वती का संविधान नहीं है तो आप मेरे साथ मेरे राज्य में आ जाओ तो उन्होंने कहा ठीक है मैं आती हूं मैं आपके पीछे पीछे चलती हूं और मेरे जो नूपुर है वो उनमें जो बेल्स है उसकी आवाज आएगी
52:35
तो आपको पता चलेगा मैं आपके पीछे पीछे हूं लेकिन एक बार भी मुड़ के नहीं देखना है मुड़ गए तो मैं वही रुक जाऊंगी दिस इज अ मोटिव दिस इज अ टिपिकल मोटिव इन ऑल फो क्लोरस एंड ल ओके सो वो गए आगे आगे चलते गए और शारदा मां पीछे पीछे
52:53
चलती है तो कश्मीर से लेकर ट तक तो आ गए लेकिन एक जगह थोड़ा पानी का बहाव था तो उसमें उनकी नूपुर की आवाज नहीं आई क्योंकि वह ऐसे करके आ गई ना तो नूपुर की आवाज नहीं आई तो शंकराचार्य ने मुड़ के देखा बोली मैं यही रहूंगी अभी और वह जगह है
53:11
कर्नाटक के बहुत प्रसिद्ध जगह शक्ति क्षेत्र मकां बिका कोलर मकां बिका तो फिर वो बोली मैं यही रुकू आचार्य ने कहा नहीं नहीं आपने तो वादा किया है मुझसे है ना आश्वासन दिया है कि आपके राज्य में आऊंगी
53:27
तो बोली मैं आऊंगी लेकिन केवल पहले दो घंटे में वहां रहूंगी बाकी मेरा निवास यहीं रहेगा तो छोटा निकरा करके एक क्षेत्र है बिल्कुल हमारा वेलियाना और कालड़ी के बीच में पड़ता है व दोनों से इक्वि डिस्टेंट है तो वहां तक गए और वहां रुके
53:44
वह और वहां वह मूल क्षेत्रम जो है वह सरस्वती का निवास है और वहां अभी भी सुबह की 5:00 बजे से जो आरती होती है 4 बजे से 6 बजे तक वह महासरस्वती रहती है शुभ्र श्वेत वस्त्र परिधान किए हुए थे पूरे दिन
54:03
वह अंबे नारायणी महालक्ष्मी के रूप में है और शाम को वह महाकाली भगवती के रूप में नीले या काले वस्त्र में रहती है वहां तांत्रिक पूजा एं होती है शाम को लेकिन सुबह उनका रूप और विग्रह बहुत प्रसन्न
54:18
सरस्वती का है तो यह त्रिक के रूप में है बहुत जागृत क्षेत्र है वहां जो भी जाता है आप वहां आएंगे तो त्रिपु तुरा त्रिपु तुरा नहीं यहां छोटा निकरा भी अवश्य जाना तो ऐसी बहुत सारी चमत्कृत आं है बहुत सारी
54:33
कथाएं हैं जितना कहे उतना कम है और उन्होंने जो भाष्य लिखे उसके बारे में क्या कहे उनके ब्रह्मसूत्र भाष्य को तो मैं पढ़ती हूं पढ़ाती हूं उन्होंने प्रस्थानत्रई पर भाष्य लिखे हैं भगवत गीता पर भाष्य लिखा है ब्रह्मसूत्र पर भाष्य
54:50
लिखा है और दश उपनिषदों पर भाष्य लिखा है इनको तीन को प्रस्थानत्रई कहते हैं ब्रह्मसूत्र को न्याय प्रस्थान उपनिषद को श्रुति प्रस्थान और भगवत गीता को स्मृति इतिहास में है ना महाभारत में तो स्मृति
55:06
प्रस्थान कहते और जो इन तीनों पर भाष्य लिखता है उनको कहते हैं आचार्य तो शंकर तीनों पर भाष्य लिखे आचार्य हो गए रामानुज आचार्य है तीनों पर भाष्य लिखे मद्व आचार्य वल्लभ आचार्य बाकी
55:23
सबको आचार्य नहीं कहते जो प्रस्थान पर भाष्य लिखते हैं उनको आचार्य कहा जाता है तो ऐसे भाष्य ग्रंथ लिखे उन्होंने यह तो उत्तमा अधिकारी के लिए है हमें बहुत सारा ज्ञान होता है लेकिन हमारी क्षमता चाहिए हमारा अधिकार भी तो चाहिए ना ग्रहण करने
55:40
के लिए तो इसके लिए अधिकारी की कल्पना हमारे गुरुकुल में पहले से है ऐसे नहीं है ना कि एक शेर है एक हाथी है और एक मछली है तीनों को आप एक ही एग्जाम दे दो पेड़ पर चढ़ने की हो जाएगा तीनों का अधिकार अलग है
55:56
भाई आजकल की एजुकेशन सिस्टम में क्या है सबके लिए एक ही एग्जाम है इसके लिए जो फेल होते हैं वो फेल ही होते रहते हैं जो जीतते हैं अच्छे मार्क्स पाते हैं वो हमेशा अच्छे नंबर लाते हैं क्योंकि सबका एक ही लेवल सबका एक लेवल नहीं हो सकता ना तो अलग-अलग
56:13
लेवल के लिए इन्होंने अलग-अलग ग्रंथों की रचना की है एक तो है प्रस्थान त्रय भाष्य उत्तम अधिकारियों के लिए फिर मध्यम अधिकारियों के लिए प्रकरण ग्रंथ है उसमें तत्व बोध है आत्म बोध है फिर विवेक
56:30
चूड़ामण है इतने सारे ग्रंथ है और मंद अधिकारी थोड़े मंद है जैसे वो गिरी पहले था मंद हमारे जैसे लोग हमारे लिए स्तोत्रं की रचना की है तो स्तोत्र पढ़िए उससे थोड़ा ज्ञान लेकर बाद में
56:47
प्रकरण पढ़िए उससे थोड़ा ज्ञान लेकर बाद में उत्तम अधिकारी बन जाइए तो अधिकारी भेद ग्रंथ भेद ऐसे बहुत सारे ग्रंथों की रचना की है मैं तो चाहती हूं आप कम से कम एकाद स्तोत्र शंकराचार्य का कंठस्थ करें उसका
57:05
कंठस्थ नहीं करे रोज पढ़े एक बार आठ श्लोक तो रहते हैं अष्टक या पंचक में गणपति पंचक है गणेश रत्न पंचक पांच लोक है पांच लोक रोज नहीं पढ़ सकते पाच मिनट भी नहीं लगते है ना मतलब हम हमारे लिए समय क्या निकालते हैं कुछ भी नहीं निकालते तो हमारे लिए
57:22
थोड़ा समय निकाल के रोज एक स्तोत्र का अगर आप पाठ कीजिए तो आपको ही अनुभूति होगी ये कुछ दिव्ये और पढ़ना चाहिए मुझे और जानना चाहिए इनके बारे में यह देखिए अभी आपने जो चरित्र सुना आज तक आपको मालूम नहीं था अब
57:38
मालूम हो गया अब तो थोड़ी जिज्ञासा बढ़नी चाहिए आप थोड़ा और आप थोड़ा और ऐसे ही होता है ना हम ज्ञान तो एकदम पूरा सो पूरा का पूरा नहीं खाते ना हम पहले चकते हैं बाद में अच्छा लगा तो और खाते हैं तो ये अगर आपको अच्छा लगा तो आप और उसको पढ़िए
57:55
और और जानिए हम तो चाहते हैं जैसे न्यास चाहता है हर घर शंकर हर घर में संस्कृत होना चाहिए हर घर में शंकराचार्य होने चाहिए अगर हम शंकराचार्य को नहीं जानते तो हम क्या जानते हैं भारत के बारे में विदेशी लोग यहां पर आकर रिसर्च कर रहे और
58:11
हमें नहीं मालूम हमारे शंकराचार्य के बारे में यह तो बुरी बात है तो हमें चढ़ना मतलब पढ़ना चाहिए आपको चखा दिया है थोड़ा सा शहद तो इसको और आप आगे ले जाइए नमस्ते नमस्ते धन्यवाद
58:28
[प्रशंसा]