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Category: Motivational Talk
Tags: ConsistencyGuidanceMindsetMotivationStrategy
Entities: 360RIIT JEEMission 150Snehit Mishra
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[संगीत] 360 आर किया या नहीं किया? जब 360 चैलेंज की मैंने शुरुआत की थी तो पहली वीडियो दी थी कि ड्रॉप ईयर में ऑल इंडिया रैंक वन लाने की कोशिश करेंगे।
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बहुत सारे ने बच्चों ने कहा कि बीच में छोड़ दिया। नहीं लाडले जिसको ऑल इंडिया रैंक वन लाना होता है ना वह रोज ऑल इंडिया रैंक वन की बात नहीं करता। वो फिर प्रोसेस में जुड़ जाता है अपने विज़ के साथ। तो यह सारी चीजें जो आई है ना अगर तुमने करा
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होगा तो मुझे पूरी गारंटी के साथ यह उम्मीद है कि किसी बच्चे ने उतना नहीं करा होगा। सोचो जो पहले दिन से कंसिस्टेंट है और अब वह बहुत बेहतर स्थिति में होगा। बहुत ज्यादा बेहतर उसे दिख गई होंगी कि
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चीजें कैसी करनी होती हैं। चीजें कैसे करते हैं हम। मिशन 150 के साथ उन बच्चों को जिन्होंने अभी तैयारी खराब कर ली है। उन्हें एक नई उम्मीद दी है कर लो। और फिर मैं आज कह रहा
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हूं कि 100 दिनों के बाद मैं यही बात कह रहा होगा कि जिस दिन मैंने मिशन 150 लांच करा था उस दिन से जिस बच्चे ने स्टार्ट करा है ना बहुत सारे बच्चे होंगे बहुत अलग-अलग स्ट्रेटजी से पढ़ रहे होंगे। बहुत अलग
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तरीके अपनाए होंगे। सबको लगता है कि ऐसे करूंगा तो हो जाएगा। जितनी भी स्ट्रेटजीस हैं उसमें वो बच्चा सबसे आगे होगा जो आज से 360 आर करना स्टार्ट कर रहा होगा। मैंने मिशन 150 में एक स्ट्रेटजी दी है।
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तुम में से बहुत सारे बच्चों ने देखी होगी। मान लो कि वो स्ट्रेटजी तुम्हें नहीं फॉलो करनी। ठीक है? लेकिन 360 आर को अपने बेस से हटाना मत। करना तो तुम्हें 360 आर ही है। मान लो कि भैया मैं किसी और स्ट्रेटजी से
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करूंगा। ठीक है करके ट्राई करो। शायद मैं गलत हो जाऊं। आज तक हुआ नहीं हूं। शायद हो जाऊं। गलत हो जाने की प्रोबेबिलिटी हमेशा होती है। अभी तक नहीं कर पाया शायद। कुछ होगा। हो जाऊं। तुम गलत साबित कर दो अगर नहीं कर पाओ। अगर तुमने कुछ और करके और उन
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बच्चों से बेहतर आ गए जो कि उस स्ट्रेटजी से अभी शुरू कर रहे हैं। ठीक है? मैं एक बात दोहराना चाहूंगा। बड़ी गंभीरता के साथ मेरी बात को सुनना कि मजाक नहीं है। ठीक है।
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मजाक होता ना तो सब कर लेते। मेरे लिए भी मैं खुद के मैं खुद से भी यह बात कह रहा हूं कि स्नेहित मिश्रा मजाक नहीं है 150 दिनों में किसी बच्चे को यहां से उठाकर के वहां ले जाना तुम्हारी भी जान लगेगी लेकिन हां इसका फायदा बहुत होगा स्नेह
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मिश्रा बहुत ज्यादा क्योंकि अगले साल वो बच्चा इंटरव्यू में तुम्हारा नाम ले रहा होगा मैं इस लालच से काम कर रहा हूं
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गाइडेंस की बात करूं तो इस वीडियो से बस तुम एक चीज ले जाना जो तुम्हें अगले 150 दिनों तक कंसिस्टेंट रहने में मदद करेगी। वो सारे बच्चे जो डे वन से कंसिस्टेंट है या बीच में स्टार्ट करा था। क्योंकि मिशन 150 जो है ना वो 360 आर का ही कंटीन्यूएशन
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है। बस जो आज बच्चे स्टार्ट कर रहे हैं उनके लिए चैप्टर्स के ऑर्डर अलग ऊपर नीचे करके दिए हैं मैंने। ताकि उनका भी सबसे बेहतर तैयारी हो सके। जो डे वन से कंसिस्टेंट हैं उन्हें वो करने की जरूरत नहीं है। वो अपने स्ट्रेटजी से चलते रहें। तो गाइडेंस के मामले में जो मैं बात कर
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रहा था एक ही लाइन लेकर जाना जो मैं शुरुआत में सबसे कहा था आज कह रहा हूं। सिंपल सोचना सिंपल। जिस दिन तुम कॉम्प्लेक्स सोचना स्टार्ट कर दोगे समझना कि सिलेक्शन उस दिन नहीं होगा। क्योंकि
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अभी के जमाने में जहां हमारे पास मोबाइल फोन है। हम इतना ज्यादा पूरे दिन में कंटेंट कंज्यूम करते हैं कि हमारे दिमाग में एक स्ट्रेस का लेवल कांस्टेंट फील होता रहता है। तुम कुछ गलत भी नहीं करोगे ना फिर भी दिमाग भारी-भारी लगता रहेगा।
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इसका रीजन है वो ओवर बर्डन ऑफ कंटेंट। मैंने अभी बोल दिया आम सबसे अच्छा फल होता है। यह एक लाइन सिर्फ नहीं है। यह एक आम की इमेजिनेशन है। एक फल की इमेजिनेशन है और एक सबसे अच्छा होने की इमेजिनेशन है।
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तो तुम्हारे दिमाग को इस लाइन ने एक पूरी की पूरी फिल्म इमेजिन करा दी है। और जब इमेजिन करते हैं तो दिमाग का वो स्पेस लेता है और पूरे दिन जब हम इतना ज्यादा कंटेंट कंज्यूम कर रहे हैं क्योंकि सिर्फ टीचर पढ़ाता नहीं है ना लाडले। वह तो बहुत सारी चीजें देता है और सिर्फ आप टीचर के
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कंटेंट थोड़ी कंज्यूम करते हो। बहुत सारे Instagram रील देखते हो, YouTube श्स देखते हो, सब करते हो। तो वो एक कास्टेंट बर्डन आपके दिमाग में फील होता रहेगा और उस बर्डन के कारण आप सिंपल सोच ही नहीं पाते। और एक दिक्कत है कि 150 दिनों में आप
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पहुंच चुके हो एग्जाम से पहले। तो आपने अभी तक बहुत सारे कंटेंट कंज्यूम कर लिए होंगे आईआईटी जेई से भी रिलेटेड। स्ट्रेटजी वाइज सारी चीजें आईआईटी के महारत होगे आप। आपसे कोई पूछेगा आईआईटी में सिलेक्ट कैसे होते हैं? 5 घंटे ज्ञान
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दे दोगे। इसका मतलब क्या है? इसका मतलब है कि आपके दिमाग में बहुत ज्यादा इंफॉर्मेशन है। प्रैक्टिकल है या नहीं वह अलग बात है। इंफॉर्मेशन है। जैसे एक कलम को हम कैसे उठाएं?
तो अब हमारे दिमाग में इंफॉर्मेशन यह हो सकता है कि उसको फूंक मार के उठा सकते
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हैं। नीचे से कागज लगाकर उठा सकते हैं। हाथ से उठा सकते हैं। कन लगा के उठा सकते हैं। इंफॉर्मेशनेशंस हैं पड़े हुए। और जब दिमाग में बहुत ज्यादा इंफॉर्मेशन हो जाता है ना तो हम एक एनालिसिस पैरालिसिस में फंस जाते हैं। यानी कि इतना ज्यादा एनालिसिस कर रहे हैं कि किसी कंक्लूजन पे
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पहुंच ही नहीं रहे। और जो भी डिसीजन ले रहे हैं उस हर डिसीजन पर डाउट क्रिएट हो रहा है। तुम ट्राई करके देखना। जो बच्चे बहुत ज्यादा एक्सपेरिमेंट कर चुके होंगे अपनी तैयारी में कि इस भी स्ट्रेटजी को इस भी स्ट्रेटजी को इस भी स्ट्रेटजी को फॉलो करें। आप फील करते होंगे कि आप कुछ भी
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डिसीजन लेते होंगे ना 2 घंटे बाद वो डिसीजन आपको खुद दिमाग कहता होगा कि यह गलत कर रहा है। गलत हो सकता है नहीं भी हो सकता। लेकिन हर बार ऐसा आपका एक पैटर्न बन चुका होगा। कोई भी डिसीजन आपका दिमाग लेने ही नहीं देगा। कुछ
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भी करोगे आपको यह कह देगा क्या इससे हो पाएगा? क्योंकि वह तो ऐसा कर रहा है। वह तो ऐसा कर रहा है। और लास्ट में पता है क्या स्थिति आ जाती है?
पिछले साल के बच्चों से भी मैंने कहा था इस साल भी कह रहा हूं कि बच्चे कहते हैं कि भैया एनसीईआरटी की किताब ढंग से पढ़ ली होती ना तो उस स्थिति से बेटर होता जिस स्थिति में
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आज हूं। मैं तुमसे कह रहा हूं तुम्हें जो स्टार्टिंग में सबसे खराब डिसीजन लग रहा था। इमेजिन करो जिसको तुमने एकदम वाहियात कह के छोड़ा। अगर उसी पे कंटिन्यू रहे होते ना तो आज उस स्थिति से बेटर होते जिस स्थिति में आज हो। उनसे नहीं कह रहा जिनकी
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तैयारी अच्छी है। आपके लिए तो मेरा सीना चौड़ा है। लेकिन वह बच्चे आपकी दिक्कत है। सिंपल नहीं सोचते। सिंपल सोचना है। क्वेश्चंस नहीं बनते भैया। बनाएंगे भैया। नहीं बन रहे भैया। क्यों नहीं बन रहे
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भैया? सिंपल सोच लेंगे। क्यों नहीं बन रहे?
पे दो-तीन रीजन आएंगे। इसे कैसे दूर करूं भैया? दूर हो जाएंगे तो ठीक बात है। नहीं हो पा रहे हैं तो क्यों नहीं हो पा रहे हैं भैया?
क्या मेरे सॉल्यूशन में कमी है भैया या फिर मेरी नियत नहीं है सॉल्व करने की भैया उस प्रॉब्लम को साधारण सोचना
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तुम्हें मेरी भी जरूरत नहीं पड़ेगी अभी मैं तुम्हारे प्रॉब्लम सॉल्व करने के लिए आता हूं बट एक दिन ऐसा आएगा प्रॉब्लम तुम सारे सॉल्व कर लोगे खुद स्नेहित मिश्रा बस तुम्हारे ऊपर एक बैठा हुआ व्यक्ति होगा जो तुम्हें कंसिस्टेंट रहने में मदद करेगा क्योंकि
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मनोविज्ञान यह कहता है कि हमारे सर के ऊपर अगर कोई व्यक्ति बैठा होता है ना तो हमें अपने कार्य को आगे बढ़ाने करने में सुरक्षित फील होता है। इसीलिए तो भगवान का कांसेप्ट आया ना क्योंकि जो बूढ़े लोग हो जाते थे, जो बड़े हो जाते थे, जो एक ऊंचे स्तर पर आ जाते थे सोच के मामले में बट
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उन्हें भी जरूरत होती थी कि सर के ऊपर मैं किसी को महसूस करूं। बट कोई है नहीं समाज में। तो भगवान इसीलिए तुमने देखा होगा कि बुजुर्ग लोग ज्यादा भगवान की भक्ति करते हैं। ज्यादा धार्मिक होते हैं। क्योंकि
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उन्हें जरूरत है एक फादर फिगर की। और मैं वही तुम्हारी उम्र में तुम्हारे सर के ऊपर बस बैठने की कोशिश कर रहा हूं। मैं कुछ ना करूं। मैं सिर्फ बैठकर तुम्हें देखता रहूं ना तुम्हारी तैयारी अच्छी हो जाएगी। यह एक एक्सपेरिमेंट भी हुआ था। एक जगह पर साइकिल चोरी हो जाती थी बहुत
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ज्यादा। अब वहां पर लोगों ने सोचा कि यार क्या करें? सीसीटीवी कैमरा वगैरह लगा नहीं सकते थे। तो उन्होंने वहां पे एक बड़ा सा आंख का डायग्राम बना दिया। अब इससे हुआ क्या कि वहां पे एक सेंस बनने लगी कि आंखें हैं तो कोई देख रहा है। कोई नहीं देख रहा। बट एक जैसे ही हम आंखें देखते
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हैं ना तो हमें लगता है कि हम पर नजर रखी जा रही है और जैसे ही हम यह फील करने लगते हैं कि हम पर नजर रखी जा रही है। है ना? हम खुद को बेटर करने की कोशिश करने लगते हैं। तुम वो सारी चीजें गंदी वाली जिससे तुम परेशान हो। चाहे वो पोर्न हो गई, चाहे वो
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मेस्टबेशन हो गया, चाहे वो प्रोकस्टिनेशन हो गया। चाहे क्वेश्चंस के लिए कंप्लेन करना हो गया या तैयारी अच्छी नहीं चल रही। इसका कंप्लेन करना हो गया। यह जो तुम एकांत में कर पाते हो वो तब
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नहीं कर पाओगे जब तुम्हें तुम्हारे सामने पेरेंट्स बैठे होंगे। पेरेंट्स नहीं भी बैठे हो ना तो तुम्हें यह फील हो कि सीसीटीवी ऊपर नकली वाला लगा हुआ है जो पेरेंट्स ने लगा दिया है। तुम्हें पता भी नहीं कि वो ऑन है या नहीं। लेकिन वो लग जाता है तो हम नहीं करते।
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इमेजिन करो कि तुम कंप्लेन कर रहे हो कि भैया मुझे फिजिक्स एकदम नहीं आता। और यह बात तुम्हारी क्रश देख रही है। तुम नहीं करोगे। भैया मेरे से नहीं होगा। यह लाइन तुम नहीं बोल पाओगे जब तुम्हारी क्रश देख रही होगी। तुम फिर वहां पर कहोगे नहीं कैसे होगा? आई विल प्रूव इट। तो यह जो
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देखने भर का जो असर है यह बहुत तगड़ा होता है और बस मेरी जरूरत वही होगी तुम्हारे ऊपर देखने भर का कि अच्छा देख रहा हूं। बीच-बीच में कमेंट्स में कह रहा हूं शाबाश। बस मेरा जो एक शाबास का कमेंट का रिप्लाई है ना वह तुम्हारा दिन बना देता
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होगा। मुझे पता है क्योंकि तुम्हें यह महसूस हो जाता है कि चलो मैंने जो मेहनत की ना वो एप्रिशिएट हो गई किसी नजर से। कर दिया। मेरी मेहनत भी नहीं जाती। जब मैं कह देता हूं कि तुम गलत कर रहे हो।
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तो वो महसूस हो जाता होगा कि अच्छा मुझे कोई गलत कहने वाला है और अकेले तैयारी करने का सबसे बड़ा नुकसान भी यह होता है कि हमें लग रहा होता है कि कोई हमें गलत कह दे। ऊपर ऊपर से देखने को लगता है कि हम हमें कोई गलत कहेगा तो गुस्सा आएगा। नहीं
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जो बच्चे फेल हो जाते हैं ना उनके डीप डाउन में यह फीलिंग होती है कि भैया सही वक्त पर कोई मुझे थप्पड़ मार देता ना मैं उससे प्यार कर लेता। सबसे बड़ा रिग्रेट यह होता है उनका कि मेरे माता-पिता ने मुझे थप्पड़ मारना छोड़ दिया।
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मैं जिस दिन आधा होमवर्क करके उठ रहा था ना भैया जैसे 5 सिक्स में होता था ना कि टीचर अगले दिन स्टिक से मारते थे। अगर कोई मुझे मार देता ना भैया मैं हो जाता भैया। अब तुम बड़े हो चुके हो। तुम्हारी गलतियों पर तुम्हें कोई थप्पड़ नहीं मारेगा।
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क्योंकि अब तुम्हारी गलतियां समाज के द्वारा थप्पड़ आकर्षित करेंगी। समाज थप्पड़ मारेगा।
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तुम जिस दिन होमवर्क नहीं करके उठोगे ना उस दिन कोई टीचर तुम्हें स्टिक से मारने नहीं आएगा। एग्जाम आएगा स्टिक से मार रहे हैं और एग्जाम का मारा हुआ ना बहुत दर्द देता है और तुम उस बच्चे की तरह हो जाओगे अगर थोड़ा सा भी अंदर से शर्म होगी ना तो
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तुम उस बच्चे की तरह हो जाएगा जो मार खाने के बाद भी एटीट्यूड में नहीं खड़े रहते ऐसे हाथ बढ़ाते चट चट चट चट दर्द हो रहा है लेकिन औररा मेंटेन कर रहे हैं औररा थाउजेंड वैसे ही तुम कहोगे एग्जाम एग्जाम से मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ता अंदर तुम जान रहे होगे क्या फर्क पड़ रहा है जब अकेले
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कमरे में तकिए के ऊपर सोए होगे ना तो यह महसूस होगा कुछ हो सकते थे यार हो नहीं पाए एक नए सपने बुनोगे एमटेक करूंगा गेट एग्जाम से एक नए सपने बुनेंगे आईएएस बनूंगा कुछ नहीं है
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ना एक चैन रिएक्शन शुरू हो जाता है फिर वो बच्चे ना सिर्फ एग्जाम के रेस में फंसे रहते हैं इनोवेट कब करोगे तुम आईटी का एग्जाम नहीं क्रैक कर रहे हो तुम खुद को क्रैक कर रहे हो थोड़ा थोड़ा
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सा खुद को प्रूफ कर रहे हो थोड़ा सा प्रूफ कर लोगे ना तो फिर जब कोई कहेगा कि नहीं यार तू पढ़ाई कर नहीं मुझे करना था मैं कर चुका हूं मैं प्रूफ कर चुका हूं ऐसे स्टार्टअप करने जाओगे ना तो सोसाइटी
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वाली चीजें जो है ना वो आएंगी पढ़ाई नहीं हुआ शायद इसलिए ये कर रहा है और कितना भी कह लो मुझे सोसाइटी से फर्क नहीं पड़ता ह्यूमन इज अ सोशल एनिमल और उसे सोशल वैलिडेशन की जरूरत है जरूर जरूरत जरूरी
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नेसेसिटी कितने भी बड़े लोग हुए हो ना अगर आप सोशल वैलिडेशन आपको नहीं मिलती तो आपको मार दिया जाएगा। बड़े लोगों को मारा गया है।
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करना सिंपल सोचना। ठीक है? सिंपल जो चीज नहीं हो रही है हो सकती है। करके देखते हैं। ओके। कंसिस्टेंट रहना, कंसिस्टेंट रहना,
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360R पर प्रेजेंट लिखना तो खुश होना। क्योंकि मैंने तारीफ की है और अगर नहीं करना या लेट हो रहा होगा ना तो डर महसूस करना कि क्या जवाब दूंगा स्नेह भैया को। जो तुम्हारे आगे लिखा रहता है ना डे वन
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प्रेजेंट, डे टू प्रेजेंट, डे 150 प्रेजेंट वो तुम्हारा फ्लेक्स होना चाहिए। Instagram के बायो में मेंशन कर देना क्योंकि तुम्हारा फ्लेक्स वह नहीं है कि तुमने 10th में कितने मार्क्स स्कोर करे। तुम्हारा फ्लेक्स वह नहीं है कि तुम किस शहर में रहते हो। तुम्हारा फ्लेक्स वो
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नहीं है कि तुम कितने महान हो। तुम्हारा फ्लेक्स सिंपल यह है कि 360 आर के कितने दिन प्रेजेंट रहे हो। और तुम्हारा एंबरेसमेंट यह है कि तुम 360R पे कितने दिन एब्सेंट रहे हो। यह फ्लेक्स बनाकर मैं छोडूंगा कि बच्चे
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iPhone से ज्यादा 360R की अटेंडेंस को शो ऑफ करेंगे। तेरे पास iPhone है मेरे पास 360R का ना 34 दिन का अटेंडेंस है। iPhone साइड रख के तुमसे पूछे कैसे करा भाई? बता दे।
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वो होगा तुम्हारे लिए 360R फ्लेक्स होना चाहिए। और मेरे लिए फ्लेक्स पता है क्या है? वह बच्चे जो कर पा रहे हैं। मिलते हैं कल एक नई बात के साथ एक नए क्लेरिटी के साथ
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अभी समय समाप्त होता है। आखिरी समय समाप्त नहीं हो रहा। एक दिन आएगा जब एग्जाम से पहले एसएम रेडियो की आखिरी वीडियो होगी और उस दिन 150 दिन पहले शुरू कर लेता है यार उसकी कसक तुम्हारे अंदर बची होगी। मैं वो
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देखना नहीं चाहता। मेरे लिए शर्म की बात होगी। कल मिलते